थार मरूस्थल के पूर्वी छोर पर स्थित मारवाड़ रियासत पर ईसा की पन्द्रहवीं शताब्दी से, रणबांकुरे राठौड़ों का शासन चला आ रहा था। 1753 ए डी से 1794 ए डी तक इस रियासत पर राठौड़ महाराजा विजयसिंह ने शासन किया। उस शताब्दी में राजपूताने में 41 साल की दीर्घ अवधि तक शासन करने वाला दूसरा राजा और कोई नहीं हुआ। वह एक प्रतापी और धर्मशील शासक था। मेवाड़ के महाराणाओं की व्यक्तिगत सुरक्षा करने के लिये उसकी सेना उदयपुर में तैनात रहती थी किंतु उसके शासन के समय में राजपूताना मराठा शक्ति के आक्रमण से बुरी तरह प्रभावित रहा। पेशवा बालाजी बाजीराव, उसका छोटा भाई रघुनाथ राव, पेशवा का प्रधानमंत्री नाना फड़नवीस, जयप्पा सिंधिया, मल्हारराव होलकर, महादजी शिंदे, तुकोजी राव होलकर, लकवा दादा और अम्बाजी इंगले आदि मराठा सरदार उस समय उत्तर भारत में सक्रिय थे।
महाराजा विजयसिंह ने पूरे 41 साल तक इन मराठा सरदारों से युध्द किया। उसने मराठाें के विरुध्द काबुल के बादशाह तैमूरशाह, दिल्ली के बादशाह अली गौहर, बीकानेर, किशनगढ़ एवं जयपुर के महाराजाओं तथा अन्य रियासतों के शासकों, सामंतों, सरदारों, नवाबों तथा अमीरों को भी तैयार किया। महाराजा विजयसिंह कभी मराठों से हारा तो कभी जीता किंतु न तो मराठे उसे पूरी तरह जीत पाये न वह मराठों को राजपूताने से बाहर धकेल सका। उसने जयप्पा सिंधिया की छल से हत्या करवाई और महादजी शिंदे को तुंगा के मैदान में कड़ी पराजय का स्वाद चखाया किंतु अंत में महाराजा विजयसिंह, डांगावास के मैदान में मराठों से हारकर बुरी तरह टूट गया।
महाराजा विजयसिंह की एक पासवान थी गुलाबराय। उसे इतिहासकारों ने मारवाड़ की नूरजहां कहकर पुकारा है। वह इतनी सुंदर थी कि महाराजा विजयसिंह ने उसे एक साधारण नर्तकी से अपनी पासवान बनाया तथा उसे महारानी का दर्जा प्रदान किया। मारवाड़ रियासत के राठौड़ सरदारों ने इस नर्तकी को राज्य की महारानी मानने से मना कर दिया। फिर भी गुलाबराय का जादू जोधपुर रियासत के सिर चढ़कर बोला। उसने जोधपुर राज्य में मांस बेचने व खाने, शराब बेचने व पीने, शिकार खेलने व पशु वध करने आदि पर रोक लगा दी तथा कसाईयों को राज्य से बाहर निकाल दिया। जिन जागीदरों तथा सरदारों ने महाराजा के इस आदेश को नहीं माना, महाराजा ने भरे दरबार में उनकी हत्याएं करवाईं और ताकतवर सामंतों को छल से कैद करके मरवाया।
महाराजा विजयसिंह भगवान कृष्ण के बाल रूप का बड़ा भक्त था। गुलाबराय भी भगवान कृष्ण की भक्त थी। इसी कारण महाराजा विजयसिंह गुलाब की तरफ आसक्त (आकर्षित) हुआ था और दोनों का प्रेम दिनों दिन बढ़ता ही चला गया था। यदि किसी व्यक्ति ने गुलाबराय का अहित करने का प्रयास किया तो महाराजा ने उसे दण्डित किया किंतु सत्ता के मद में गुलाबराय दिनों दिन घमण्डी होती चली गई। उसने राज्य की सत्ता को अपने नियंत्रण में कर लिया। बहुत से सरदार उसके समर्थक हो गये और बहुत से सरदार उसके विरोध में उठ खड़े हुए। गुलाब ने इन सामंतों से हार नहीं मानी। वह इनसे लोहा लेती रही और आगे बढ़ती रही।
पासवान गुलाबराय ने महाराजा विजयसिंह के उत्ताराधिकारी के रूप में पहले तो अपने औरस पुत्र तेजकरणसिंह का, फिर दत्ताक पुत्र राजकुमार शेरसिंह का और अंत में मातृ-पितृ विहीन राजकुमार मानसिंह का चयन किया। इस कारण्ा जोधपुर रियासत का राजदरबार और महाराजा का रनिवास अनेक भयानक षड़यंत्रों से भर गया और कई सामंतों तथा राजकुमारों की हत्याएं हुईं। अंत में जोधपुर रियासत के सामंत महाराजा विजयसिंह से नाराज होकर जोधपुर दुर्ग से बाहर चले गये। जब महाराजा उन सरदारों को मनाने के लिये दुर्ग से बाहर निकला तो पीछे से उसके पौत्र राजकुमार भीमसिंह ने मेहरानगढ़ दुर्ग तथा राजधानी जोधपुर पर अधिकार जमा लिया। इस कारण महाराजा को लम्बे समय तक दुर्ग तथा राजधानी से बाहर रहना पड़ा। उधर राजकुमार भीमसिंह तथा उसके साथी सामंतों ने मिलकर गुलाबराय की हत्या कर दी। जब कई महीनों बाद महाराजा पुन: अपनी राजधानी में लौटा तो उसे गुलाब की हत्या के बारे में जानकारी हुई। उसने भीमसिंह को पकड़कर लाने के आदेश दिये किंतु भीमसिंह अपने साथी सामंतों के साथ राजधानी से दूर भाग गया। अपनी प्रेयसी गुलाब के शोक से दुखी होकर कुछ ही दिनों में महाराजा विजयसिंह ने भी प्राण त्याग दिये।
प्रस्तुत उपन्यास महाराजा विजयसिंह के काल में मारवाड़ रियासत में हुई घटनाओं तक सीमित है। इसका तानाबाना उत्तर भारत की राजनीति में महाराजा विजयसिंह की गतिविधियों तथा पासवान गुलाबराय के प्रति उसके अनन्य प्रेम को केन्द्र में रखकर बुना गया है। अठारहवीं शती में महाराजा विजयसिंह तथा गुलाबराय का एक साथ उपस्थित होना, भारतीय इतिहास की एक अनुपम मिसाल है किंतु महान व्यक्तित्वों के साथ अपवाद भी लगे ही रहते हैं। इन दोनों ऐतिहासिक चरित्रों के साथ भी ऐसा ही हुआ है।
राजस्थान के प्रथम इतिहासकार तथा राजपूताना के एजेंट टू दी गवर्नर जनरल कर्नल टॉड ने गुलाबराय के बारे में लिखा है कि गुलाब ने कई बार राजा विजयसिंह को जूतियों से मारा। नि:संदेह टॉड बरसों तक राजपूताना की रियासतों में घूमा था किंतु उसे राजपूत रियासतों की उज्जवल परम्पराओं एवं मर्यादाओं की पूरी जानकारी नहीं थी। सामंती परिवेश में यह संभव नहीं था कि कोई पासवान, अपने समय के सबसे महान, सबसे शक्तिशाली और सबसे प्रभावशाली महाराजा को जूतियों से मारे और फिर भी राजा उस पासवान को महारानी का दर्जा दिलवाने के लिये आतुर रहे। हैरानी यह देखकर होती है कि टॉड के बाद किसी इतिहासकार या लेखक ने टॉड के कथन का खण्डन करने का प्रयास नहीं किया।
प्रस्तुत उपन्यास में इन दोनों ऐतिहासिक चरित्रों के बारे में वास्तविक तथ्यों की शोध करके पूरा घटनाक्रम रोचक विधि से तैयार किया गया है। ताकि इस उपन्यास के माध्यम से इन दोनों का महान और उज्जवल चरित्र पाठकों के समक्ष आये और पाठक उस युग की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में महाराजा विजयसिंह और गुलाबराय की वास्तविकता को समझ सकें।
यह रोचक शैली में लिखा गया उपन्यास है जिसमें कथानक को आगे बढ़ाने के लिये चुटीले संवादों का सहारा लिया गया है तथा ऐतिहासिक तथ्यों की पूरी तरह से रक्षा की गई है।
Thursday, December 31, 2009
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आपका उपन्यास इतिहास से रु-बी-रु करता है .
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनाओं के साथ ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
ReplyDeleteThis is a tradgedy that instead of being together, the most coveted MARTIAL clan of India, The RAJPUTS and MARATHAS fought together, instead of having blame game lets be together, as a MARATHA I shall never take pride in telling that my ancestors defeated RAJPUTS, in all it was a DEFEAT of our nation
ReplyDeleteI have get some new and interesting information.nice to read.
ReplyDeleteI have get some new and interesting information.nice to read.
ReplyDeleteInteresting but use paswan as a Noun Only not in other meaning ok
ReplyDeleteBecause Paswasn means deafender, Rakshak